लेखक की कलम से

मेरे जागती आंखों के सपने …

तसव्वुर जो पूरे हो जाते तो ये जुनून कहा से आते ।

 

कोशिश तो करने दो जरा हमें, ये दो पल की है उम्र- ए -हयात ।।

कसम है खुदा की तुम्हें ना जगाओ मुझे, मैं अभी नींद में हूं जरा ।।

 

कुछ पल शब को बंद निगाहों, में शकुन से जी लेने दो जरा ।

 

कुछ पल तो मुझे मुस्कुराने दो मैं जन्नत की सैर कर लूं जरा ।।

 

अभी तो मैं काबे में हूं, सफर ऐ मदीने की कर तो लेने दो जरा ।

मेरे बंद निगाहों, में मैं खुदा को देख लूं तो जरा ।

 

तुझे है खुदा का वास्ता कुछ देर ठहर तो जाओ जरा ।

 

अभी अभी तो इबादत में हूं, मुझे निंद से ना जगाओ जरा ।

 

गर हकीकत में मैं आ जाऊं तो मैं अंधेरों से डर लगता है मुझे जरा ।

 

खुदा का ख्वाब रहने दो वो मुझे वो चाहता है बड़ा

 

नींद से न जगाओ मुझे तुम्हें है खुदा का वास्ता ।।

©तबस्सुम परवीन, अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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