लेखक की कलम से

खड़ी बोली के हस्ताक्षर और हिन्दी पत्रकारिता के पुरोधा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी …

आज पुण्यतिथि पर विशेष

द्विवेदी ने साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को  नई दिशा और दृष्टि प्रदान की। उनके अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’ (1900–1920) के नाम से जाना जाता है।  उन्होने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा।

वे सरल व सुबोध भाषा लिखने के पक्षधर थे। उन्होंने स्वयं सरल और प्रचलित भाषा को अपनाया। उनकी भाषा में न तो संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है और न उर्दू-फारसी के अप्रचलित शब्दों की भरमार।  वे गृह के स्थान पर घर और उच्च के स्थान पर ऊँचा लिखना अधिक पसंद करते थे। द्विवेदी ने अपनी भाषा में उर्दू और फारसी के शब्दों का निस्संकोच प्रयोग किया, किंतु इस प्रयोग में उन्होंने केवल प्रचलित शब्दों को ही अपनाया। द्विवेदी की भाषा का रूप पूर्णतः स्थित है। वह शुद्ध परिष्कृत और व्याकरण के नियमों से बंधी हुई है। उनका वाक्य-विन्यास हिंदी को प्रकृति के अनुरूप है कहीं भी वह अंग्रेज़ी या उर्दू के ढंग का नहीं।

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने पचास से अधिक ग्रंथों और सैकड़ों निबंधों की रचना की। इसमें से विचार- विमर्श, रसज्ञ-रंजन, संकलन, कालिदास की निरंकुशता, कालिदास और उनकी कविता आदि प्रमुख है। उन्होंने कई ग्रंथों का अनुवाद भी किया।  संस्कृत से अनूदित ग्रंथों में रघुवंश, महाभारत, कुमारसंभव जैसे ग्रंथों के नाम उल्लेखनीय  है।

1903 में वे प्रतिष्ठित ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक बने और सरस्वती को बड़ा मुकाम दिया।

महावीरप्रसाद द्विवेदी कविता, कहानी,आलोचना, पुस्तक समीक्षा, अनुवाद, जीवनी आदि विधाओं के साथ उन्होंने अर्थशास्त्र, विज्ञान, इतिहास आदि  अनुशासनों में न सिर्फ विपुल मात्रा में लिखा, बल्कि अन्य लेखकों को भी इस दिशा में लेखन के लिए प्रेरित किया.आचार्य द्विवेदी के अतुलनीय योगदान के कारण ही आधुनिक हिन्दी साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’के नाम से प्रसिद्ध है.

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने जिस भाषा को अपनाया वह न तो संस्कृत शब्दों से लदी हुई है और न उसमें विदेशी शब्दों की भरमार है। उन्होंने सरल और प्रचलित भाषा को ही अपनाया। आधुनिक हिन्दी साहित्य के निर्माता के रूप में उन्हें सदैव याद रखा जायेगा।

©डॉ साकेत सहाय, नई दिल्ली      

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