लेखक की कलम से
कैसे कह दूं …
कैसे कह दूं कि तुम
मुझको भातें नहीं हो,
मेरे ख्यालों में रात- दिन
तुम रहते हो,
मैंने रोका कई बार
इन खयालों की उलझन को,
हाय क्या करूं यह रुकती नहीं,
आ जाती है बार-बार,
मेरे ख्यालों से फिर मेरे
सपनों में आते हो,
हाय क्या करूं तुम सपनों से
फिर नहीं जाते हो,
गर न देखूं तुझे तो
कहीं लगता नहीं है दिल,
बातें बहुत होती है
तुझसे कहने को,
जब आते हो सामने,
सब कुछ कहना भूल जाती हूं,
कैसे कह दूं कि तुम मुझको
भाते बहुत हो,
ये शर्म की आगोशी
कहने से मुझे रोक लेती हैं,
मेरी निगाहों के रस्ते तुम
मेरे दिल में आते हो,
हाय क्या करूं कि तुम,
दिल से फिर नहीं जाते हो,
क्या आजकल तुम्हारा
यहीं ठिकाना है,
कहती हूं जाने को
फिर भी नह़ी जाते हो,
बेचैन आंखों का मैं क्या करूँ,
तरसती हैं तुझे ही देखने को…..।।
©पूनम सिंह, नोएडा, उत्तरप्रदेश