लेखक की कलम से

ग़ैर मामूली …

 

बीते कल में जो बात मामूली थी

आज वही ग़ैर मामूली हो गई।

गली कूंचों में चहल पहल,

बच्चों की मस्तियां,

नुक्कड़ पर रामभरोसे की दुकान पर

गर्म चाय की चुस्कियां,

सब्जी मंडी में दूर दूर तक लगी लारियां।

भीड़ से गुज़र कर,

छांट छांट कर ताजा सब्जियों

से भरती अनेकों थैलियां।

बीते कल मामूली बात थी।

आज ग़ैर मामूली हो गई।

 

सुबह जल्दी बच्चों को उठाना,

स्कूल बैग तैयार करना,

टिफिन बनाना,

स्कूल बस तक छोड़ने जाना।

दफ्तर जाते पतिदेव को

दरवाजे तक आ बाये बाये कहना।

मंदिर जाने को तैयार मां का

पूजा थाल सजाना।

बीते कल मामूली बात थी।

आज ग़ैर मामूली हो गई।

 

वो किट्टी पार्टियां,

आये दिन की खरीदारियां,

गर्मी की छुटियों में

हिल स्टेशन जाने की तैयारियां,

जरा सी अनबन होने पर,

मायके जाने की धमकियां,

सुबह की सैर,

लाफ्टर क्लब के ठहाके,

शादियों की रौनक,

पटाखों की आवाजें

बीते कल मामूली बात थी।

आज ग़ैर मामूली हो गई।

 

वक्त वक्त की बात है

आएगा वो कल भी

जब गैर मामूली होंगी फिर से मामूली।

 

©ओम सुयन, अहमदाबाद, गुजरात          

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