लेखक की कलम से

कालजयी योग …

 

भोग बढ़ाए रोग को ,

योगी रहे निरोग ।

 

जीवन में जो सुख चहें,

करे निरंतर योग।

 

किस विधि योगी योग से ,

जीते काल कराल।

 

गिरिजा सोई पुछन चहैं

प्रश्न है शंभू दयाल।

 

उमा प्रश्न उत्तम अति,

किया लोक हित जान।

 

तत्त क्षण शंभू कलजायी,

विधि करे योग बखान।

 

मुख आकृति चोंच सी,

करे जो वायु पान।

 

घोड़े जैसा वेग हो,

हाथी सा बलवान।

 

यौवन में गंधर्व सा,

हो घुंघराले बाल।

 

शत आयु विचरण करे,

निकट न आए काल।

 

गरुण जैसी दृष्टि हो,

गमन करे आकाश ।

 

रिद्धि सिद्धि संपन्न हो,

मौत न आए पास।

 

©जाधव सिंह रघुवंशी, इंदौर                                            

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