लेखक की कलम से

शिशिर ऋतु का स्वागत…

साफा पहने चली जनानी
ठहरा हुआ देख रहा मर्दानी
बात जात जज़्बात बराबर
प्यार मांगता दोनों से कुर्बानी

कंधा कंधा मिल करें अगुवानी
कट्टरों की नहीं चले मनमानी
युग बदला है लोग बदल गये
मिलकर रहने में क्या परेशानी!

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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