लेखक की कलम से
मुंशी प्रेमचंद …
साहित्य जगत के सम्राट मुंशी,
जनमानस के तुम धड़कन हो।
है लेख तुम्हारी हिन्दी उर्दू,
खूब इसमें ये कलम चले।
चले कलम स्वप्नद्रष्टा बनकर,
उदित रोशनी की नई सूरज तुम।
लेखनी है ओ गजब निराली,
नारी शोषण पर प्रहार किए।
समरसता का पाठ पढ़ाकर,
मानव एकता की सन्देश दिए।
ग्रामीण हो या शहरी जीवन,
अंधविश्वास को भी दूर किए।
मानव की तुम भेद बताकर,
अमीरी-गरीबी पर प्रहार किए।
हिन्दू-सिक्ख हो मुस्लिम-पारसी,
सब धर्मों का भी सम्मान किए।
स्वतंत्रता की ये चिंगारी को,
ज्वाला बनकर सन्देश दिए।
धन्य-धन्य हो तुम मुंशी जी,
विश्व में भारत का नाम किए।
©योगेश ध्रुव, धमतरी, छत्तीसगढ़