लेखक की कलम से

पशु प्रेम आखिर क्यों …

देवताओं की कहानियों में अनेक पहेलियां हैं और ढेर सारे रहस्य है। हम कभी इन रहस्यों को समझ पाए है …!! उनके मंदिरों और मूर्तियों में गहरे अर्थ छिपे हुए है। किसी भी मंदिर में देखा जाये तो, एक चीज सामान्य रूप से जुड़ी हुई है। सभी देवी देवताओं के वाहन पशु-पक्षी है। उनमें पशुओं और पर्यावरण के प्रति अद्भुत प्रेम दिखता है। जैसे शिव के गले मे साँपो की माला उनके सर्प मित्र होने का गुण दर्शता है। माँ शेरावाली शेर पर विराजमान रहती है, ऐसा होना भी पर्यावरण प्रेमी और पशु प्रेमी का ही गुण दर्शाती है।

विष्णु के गरुड़ से लेके शिव के नंदी, श्रीकृष्ण की गाय से लेके इंद्र के ऐरावत हाथी तक। आखिर क्यों, हर भगवान इन पशु प्राणी, नदी, बादल, पहाड़ों की चट्टानें और समुद्रों से जुड़े हुए है …. यही की देवी देवता पर्यावरण और पशुओं के सेवक है। उनके प्रतीक जगत में शांती, एक दूसरों के प्रति प्रेम और सदभावना लाने का संदेश देते है। यह संदेश पाँच हजार साल पुरानी मूर्तियां भी देती है। परंतु हम इतने लालची और स्वार्थी बने हुए है कि सिर्फ अपने उद्धार और मोक्ष प्राप्ती के लिये इन पशुओं को थोड़ी देर से अपनाते है और भगवान को ही धोखा देके सच्चे उपासक होने का दिखावा और दावा करते है। भगवान नही चाहते कि उसकी बनाई गई सृष्टि को कोई उजाड़ दे।

यह तो कल्पनाओं की बाते है। उसमें एक वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारण भी है। यदि पशुओं को भगवान के साथ नही जोड़ा तो शायद ही पशुओ के प्रति हिंसा , हत्या और भी बढ़ जाती। हर पशु किसी न किसी भगवान का प्रतिनिधि है और उसकी हत्या नही करनी चाहिए यही इसके पीछे सब से बड़ा संदेश है। हर धर्म की संस्कृति पशुओ के प्रति जन जन की करुणा को जागृत करती है।

  ©हेमलता म्हस्के, पुणे, महाराष्ट्र  

 

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