लेखक की कलम से
प्रतिज्ञा …
आखिर एक दिन
बोतल शराब की
अकेले में मुझसे कह गयी
तुम मुझे क्या पी सकोगे ?
मैं तुम्हें पी जाऊंगी
सुखाकर तन तेरा स्वस्थ, एक दिन
कंकाल बना जाऊंगी
फिर भी गर,
तुमने न मानी, तो तुझे
मौत के गले लगाऊंगी
कर दूंगी पत्नी को विधवा
और बच्चों को अनाथ।
हो सके, तो छोड़ दे रे मूरख
अब भी, तू मेरा साथ।
बीड़ी पर विश्वास था
पर, वह भी दगा दे गयी
फुसफुसाकर कान में
सहसा, कुछ कुछ कह गयी।
बेरहमी से, तुम मुझे
इस कदर जलाते हो
देख लेना, मैं भी एक दिन तुझे
ज़िन्दा जला जाऊंगी।
तम्बाकू ने भी तमतमाकर,
न जाने क्या कुछ कह दिया
कि अनचाहे- अनजाने
आखिर, मैंने भी यह प्रण किया
कि, जीवन से मोह है, गर
तो, बीड़ी पीना छोड़ दो
तंबाकू से ले लो तलाक़
और, नाता शराब से तोड़ लो।
©राजीव भारती, भिवानी हरियाणा