लेखक की कलम से

हे ईश्वर कुछ करो …

“हे ईश्वर कुछ करो !

हे ईश्वर कुछ तो करो ;

माहौल मायूस हो गया है –

हर शख्स खामोश हो गया है ,

ये कैसा वक्त आ गया है –

सवाल ही सवाल दिख रहे हैं-

अज़ब सा सन्नाटा छा गया है ।।

कोरोना ने सबका –

जीना हराम कर दिया है ,

देखो वो आदमी जो –

सामने जो जा रहा है ,

वो टहल रहा है , घूम रहा है –

खा रहा है, पी रहा है ,

सब कुछ कर रहा है –

पर वो जी नहीं रहा है –

वो जीना तो चाहता है

पर चाह कर भी , जी नहीं पा रहा है ,

आज वो डरा और सहमा हुआ है-

चिंता है, फिक्र है उसे ,

 अपनी नहीं , अपनों की –

और उन अपनों के सपनों की ।।

इन हालातों का बिगड़ना –

उसे अन्दर तक हिला रहा है ,

 एक एक लम्हां इस माहौल का-

 उसे असहाय सा बना रहा है ।।

हे ईश्वर कुछ करो !

हे ईश्वर कुछ तो करो ;

और जो कुछ भी करो –

अति शीघ्र ही करो ।।

अति तो पहले ही-

 बहुत हो चुकी है –

धैर्य छूट रहा है –

हिम्मत चुक चुकी है ।

बस एक तुम्हारी कृपा के इंतजार में –

हजारों , लाखों आँखों में आस जग रही है ,

हर सुबह इंसान एक तुम्हारे –

विश्वास के साथ उठता है ,

वो सोचता है कि आज सब ठीक हो जायेगा –

सब कुछ एकदम सामान्य ….

फिर से बिलकुल पहले जैसा …

बच्चे फिर से अपने स्कूल-कॉलेज जायेंगे …

पढ़ेंगें -लिखेगे़ –

खेलेगें -कूदेंगें ,

मिलेंगें-जुलेंगें –

अपने दोस्तों के साथ ।।

हम सब भी मिलेंगें उन अपनों से –

मिलनें को तरस रहें हैं जिनसे,

गप शप करेंगें – चाय पियेंगें ,

और बेधड़क गले भी मिलेंगें ।।

पर इस कोरोना ने सबका –

जीना हराम कर दिया है ….

कितने साथी बेरोजगार हो गये हैं –

कितने जिंदगी से बेज़ार हो गये हैं,

कितनों के घर उजड़ गये –

कितने अपनों से बिछड़ गये हैं …

इस दौरान आदमी कितना कुछ सह गया है-

जाने किस-किस दौर से गुजर गया,

अब और क्या दिखाना है बाकी –

न जाने अभी और कितने इम्तेहान बाकी हैं ।।

किसी के सिर पर ताज है –

कोई दाने-दाने को मोहताज है ,

जिनको समझना था वो समझ चुके हैं –

जो रह गये वो कभी भी समझेंगें नहीं।।

हे ईश्वर कुछ करो !

हे ईश्वर कुछ तो करो ;

और जो कुछ भी करो –

अति शीघ्र ही करो ।।

अति तो पहले ही –

बहुत हो चुकी है ,

धैर्य छूट चुका है –

हिम्मत चुक चुकी है ।।

हे ईश्वर कुछ करो –

हे ईश्वर कुछ तो करो …।। “

©भावना सिंह, लखनऊ, यूपी 

Back to top button