लेखक की कलम से
क्षणिकाएँ …
तूलिका
हैं कण कण में बिखरे/
ब्रह्मा की/
तूलिका के रंग
शाम
झपटी शाम/
तपते सूरज पर/
सूरज का रुवाब/
हुआ चकनाचूर!
संध्या
संध्या देती/
उम्मीद किरण/
भाग्य उदय का दिन/
दूर नहीं!
बाती
तम हरने को/
देती है बाती/
खुद की आहुति/
नारी ही तो है !
आज़ादी
आज़ाद ख्यालात थे/
थी उड़ने की चाहत/
भेड़ियों के झुंड ने/
तन से रुह को/
दे दी आजादी।
©अंजु गुप्ता, हिसार