लेखक की कलम से

प्रधान पति …

लघुकथा

 

 

” हेलो पापा ” ।

“हाँ ‘बोलो नेहा बेटा”।

“मतगणना हो गयी हमारे गाँव के ग्राम प्रधान चुनाव की”?

“नहीं, अभी चल रही है”, थोड़ी देर में पूरी हो जाएगी।

“अच्छा, वैसे अभी कौन आगे चल रहा है”।

“अभी ब्लॉक पर मौजूद गॉव वालों से खबर मिली है कि रामनिवास लगभग तीन सौ वोटों से आगे हैं”।

“ठीक है, अंतिम परिणाम आये तो मुझे फोन करना”।

“तुझे बंगलुरु में बैठ कर भी चैन नहीं है, जो बने अपनी बला से, हमें क्या लेना “।

“अरे !!, रोचकता क्यों न हो, हम भले ही कही भी रहे, अपना गाँव हमेशा हमारे दिल में बसता है, और फिर गॉव के विकास के लिए बहुत जरूरी भी तो है किसी नेक आदमी का प्रधान के रूप में चुना जाना”।

“अच्छा भाई ठीक है, थोड़ी देर में करता हूँ फ़ोन”, नेहा का लम्बा उपदेश बीच में ही काटते हुए उसके पिता ने कहा।

कुछ देर बाद फ़ोन की घण्टी बजी।

“हाँ पापा, कौन बना प्रधान”, नेहा ने उत्सुकता वश पूछा।

“रामनिवास दो सौ बावन वोटों से अपने निकटतम प्रतिद्वन्दी से जीत गए है”।

“ओके पापा “।

 

अगली सुबह जब नेहा लैपटॉप लेकर अपने शहर का इ दैनिक जागरण अखबार पढ़ने बैठी तो उसमें नव निर्वाचित ग्राम प्रधान की सूची में अपने गॉव के प्रधान का नाम पढ़ा जो “शीला देवी “लिखा था।

 

” हेलो पापा ,आप तो बता रहे थे कि ग्राम प्रधान रामनिवास बने हैं, किन्तु पेपर में तो किसी शीला देवी का नाम लिखा है”।

अरे बेटा, शीला देवी रामनिवास की ही घरवाली है, पिता ठहाका लगा कर हँसे।

“फिर आपने ये क्यों नहीं कहा कि शीला देवी ग्राम प्रधान चुनी गई है”, नेहा की आवाज में नाराजगी थी।

 

“अरे वो तो इस बार सीट महिला आरक्षित थी, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को चुनाव में खड़ा कर दिया, वैसे प्रधान का काम तो रामनिवास ही देखेंगे न !,वैसे भी घरेलू महिलाओं के बस की बात कहा है तहसील, कचहरी, ब्लॉक के दांव पेंच समझना, ऊपर से इतनी भागदौड़ और 100- 50 लोगों से हर रोज बोलना बतियाना, झगड़े निपटाना, ऊपर से गाँव समाज में बड़े बुजुर्गों के सामने ओल्हा -परदा करना सो अलग…..” ।

वो बोलते ही जा रहे थे ,मगर नेहा के कान जैसे सुन्न हो गए हो कुछ सुनाई ही नहीं पड़ रहा था ,हैरान थी वह अपने पिता की दोहरी मानसिकता देखकर, जो अपनी बेटी को तो जज, कलेक्टर बनाने का ख्वाब देखते है परंतु एक भरे-पुरे कुटुम्ब को बखूबी संभालने वाली घरेलू महिला को कमतर आँकते हैं, तरस आ रहा था उसे प्रत्येक ऐसे मर्द की सोच पर जो अपनी श्रेष्ठता और सत्ता को बचाने के लिए स्त्री के अधिकारों को पैरों तले कुचलते हुए बड़ी सहजता से आगे बढ़ जाते है, बिना किसी पश्चाताप और संकोच के….।

 

©चित्रा पवार, मेरठ, यूपी                   

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