लेखक की कलम से
प्रतीक्षार्थी ….
प्रतीक्षारत हैं सभी!
हर श्वास के बाद दूसरे श्वास की
हर भोर के बाद दूसरी भोर की
हर कदम के बाद दूसरे कदम की
हर गति के बाद तीव्र होने की
प्रतीक्षारत हैं सभी
दृष्टि के असीम होने की,
दिशाओं में खोने की,
अनंत में होने की,
प्रतीक्षारत हैं सभी!
शिशु कदमों के यौवन से
गुजरते प्रौढावस्था से होते
अंतिम सफर पर निकलने की,
प्रतीक्षारत हैं सभी!
जड़ से चेतन तक
अवचेतन से अचेतन पटल तक
प्रतीक्षारत हैं सभी!
झोपड़ी के महल बनने की,
कदमों के मंजिल होने की
जी हाँ!
एक के अनेक होने की,
रेत को समंदर में खोने की,
कली के महक होने की,
वर्ण के सार्थक होने की,
पक्षी के असीम में होने की,
पत्तों के धराशाही होने की,
जीवन के पूर्ण होने की!
सब के सब प्रतीक्षारत हैं,
हम
प्रतीक्षार्थी हैं!
ज्ञात हुआ ना तुम्हें!
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता