लेखक की कलम से
ओ मेरे दिलबर ….
गीत 2
बैठी थी ज़माने से रुठकर मैं
सारी उम्मीदें छोड़ी थी मैं
तूने ही जीने का आस जगाया
तूने ही मुझको राह दिखाया।
तू ही मेरे मुसीबत का है सहारा।
आँखों से न ओझल होना कभी
ओ मेरे दिलबर ओ मेरे यारा।।
तेरी आँखें मुझे पास बुलाती हैं
मुझमें एक प्यास जगाती हैं
हम अपना तन मन सब हारे
क्यों लगते हो तुम इतने प्यारे।
तू ही मेरे आँखों का तारा।
आँखों से न ओझल होना कभी
ओ मेरे दिलबर ओ मेरे यारा।।
तू ही मेरा साहिल है, तू ही मेरा नैया
हिला दिया तूने मुझे, तू ही मेरी छैंया
तेरे आँखों में मेरा सपना सारा
पागलपन है तू मेरा, सबसे है न्यारा।
तू ही मेरा प्रीतम तू ही दिलदारा
आँखों से न ओझल होना कभी
ओ मेरे दिलबर ओ मेरे यारा।।
©मनीषा कर बागची