लेखक की कलम से

फिजा जमाने की …

 

बदल गयी है फिजा बदल गया है मन्ज़र,

हो गया है सबका जीवन अब एक खंजर।

 

लग गये मुहँ पे मास्क बड़ गई दूरियाँ,

सेनिटाइज़र अब खास बड़ गयी खूबियाँ।

 

न दोस्तों की महफिले न खुशनूमा समां,

ईद हो य दीपावली गले मिलने मना।

 

गुरुद्वारे,मंदिर,मसजिद,चर्च हो गये सूने,

शब्द,कीर्तन,आज़ान,कैरल अनसुने।

 

नये जीवन की शुरुआत पचास लोगो से,

जीवन की अन्तिम विदाई बीस लोगों में।

 

बदल गयी है फिजा बदल गया हैं मंजर।

 

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

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