लेखक की कलम से

हैरत की बात है न ?

अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार होता है तो उसके समर्थन में हजारों लोग आएंगे। इंसाफ़ की गुहार लगाएंगे हजारों हाथों में मोमबत्तियां तो दिख जाएँगी ये दिखाने के लिए की, वे सब उसकी मुश्किल घड़ी में उसके साथ हैं। पर क्या एक के हाथ में भी वरमाला उठाने की हिम्मत नहीं आती ?

जो सच में उसकी तबाह हुई जिंदगी को बदल दें ?

हमारा समाज एकदम निराला है। इसे लिविंग में रहने वाली लड़कियाँ तो मंजूर हैं जो की स्वयं अपनी मर्जी से लड़कों के साथ रहती हैं, पर समाज को वो लड़कियॉ मंजूर नहीं जिनके साथ जबरदस्ती की गयी हो। अगर वो लड़की मर गई तबतो ठीक है, वर्ना यह समाज उसके साथ ऐसा व्यवहार करेगा जैसे उस लड़के ने नहीं लड़की ने ही वह पाप किया हो। और तब उस बलात्कारी ने एक बार बलात्कार किया था पर यह समाज अपने विचारों से उस लड़की का जाने कितनी बार बलात्कार करता है। अजीब विडम्बना है यह समाज की।

©श्वेता पांडे, मुंबई

परिचय- मूलत: वाराणसी की निवासी, एमए-बीएड, सभी विधा में 60 से अधिक कविताएं, राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन, कहानियां, व्यंग्य और संस्मरण लिखने का शौक।

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