लेखक की कलम से

याद…

सुनो क्या तुम में मुझे भूल गए हो

या फिर खुद को बहला रहे हो

नहीं तुम मुझे नहीं भूले

मैं तुम्हारी हर आह में हूं

साथ गुजरे जिन गलियों में कभी

आज भी मै उन गलियों में हूं

जब भी देखते होगे कोई अल्हड़ सी लड़की

या देखते होगे घर की पुरानी वो खिड़की

सामने मुझे पाते होगे

हां तुम मुस्कुरा देते होगे

बिगाड़ देती होगी जब कोई तुम्हारे बालों को

खो जाते होगे तुम मेरे ख्यालों में

जब तुम दर्द में होते होगे

मेरा प्यार से सहलाना याद करते होगे

तुम्हें याद है अक्सर तुम सामान भूल जाते थे

फिर परेशान होके पास मेरे आते थे

मैं पल में सामान देती

जाते हुए प्यार से एक थपकी देती

आज जब भी कुछ खो जाता होगा

सामान बिखरा नजर आता होगा

तुम मुझे ही याद करते होगे

क्यों छोड़ा सोच पछताते होगे

आज खुद वो जूते उतारते होगे

हर सामान सलीके से रखते होगे

हा तुम मुझे याद करते होगे

जानती हूं तुम कहोगे कि हां भूल गया

क्युकी तुममें एक पुरुष होने का अहम है

और शायद खुद से ये झूठ बोलते होगे

मुझे भूले सच में ये सवाल करते होगे

हां तुम मुझे याद करते होगे

हां तुम मुझे याद करते होगे

©दीपिका अवस्थी, बांदा, उत्तरप्रदेश

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