लेखक की कलम से

इला भट्ट ने महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर …

हेमलता म्हस्के  |  इला भट्ट प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने भारत की महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया।1972 में सेल्फ-एम्पलॉयड वीमन एसोसिएशन (सेवा) नामक महिला व्यापार संघ की स्थापना की थी। 12 लाख से अधिक महिलाएं इसकी सदस्य हैं। इसी तरह उन्होंने 1974 में ‘सेवा’ को-ऑपरेटिव बैंक की स्थापना की थी। इला भट्ट पदमश्री और पदम भूषण से अलंकृत की गईं। फिर उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, राईट टू लाइवलीहुड पुरस्कार, निवानो शांति पुरस्कार, शांति, निरस्त्रीकरण व विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से नवाजीं गईं।

वरिष्ठ गांधीवादी इला भट्ट का जन्म 7 सितबर 1933 को अहमदाबाद में हुआ। उनके पिता वकील थे। और माँ स्त्री आंदोलन की सक्रिय कार्य कर्ता थीं। शिक्षित घर में जन्म लेने वाली इला की प्रारंभिक शिक्षा सूरत में सार्वजनिक कन्या उच्च विद्यालय में हुई। उसके बाद उन्होंने एमटीवी कॉलेज (सूरत) से आर्ट्स में स्नातक की डिग्री लेने के बाद सर एलए शाह लॉ में प्रवेश लेकर हिंदू कानून पर काम करने के लिए स्वर्ण पदक हासिल कर लिया। उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत मुंबई की श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरे विश्वविद्यालय से हुई, जहां से उन्होंने अग्रेजी पढ़ाने का काम शुरू किया। स्नातक की पढ़ाई के दौरान इला की मुलाकात रमेश भट्ट नाम के युवक से हुई, जो निडर छात्र नेता थे। इला ने रमेश भट्ट के साथ शादी करने का निश्चय किया तो इला के माता-पिता ने उनका सख्त विरोध किया। वे नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी आजीवन गरीबी में रहे। विरोध के बावजूद इला ने सन 1955 में रमेश भट्ट से विवाह कर लिया। इला शादी के बाद वकालत करने लगी लेकिन वे हमेशा महिलाओं को आत्मनिर्भरता बनाने के बारे में सोचतीं रहतीं थीं।

इसी दौरान साल 1971 में कुछ महिलाओं ने इला भट्ट से मदद की मांग की। ये महिलाएं शहर में हाथगाड़ी और सर पर बोझा ढोनेवाली कुली थीं। उनकी मजदूरी बेहद कम होने के कारण उन्हें बहुत कठिनाई ही रही थी। यहां तक कि उनके पास रहने के लिए घर भी नहीं थे। वे खुली सड़कों पर ही अपना जीवन बिताने को मजबूर थीं। इला भट्ट ने उनकी सारी समस्या समझ कर स्थानीय समाचार पत्रों में लिख दिया। इस लेख को देखते हुए कपड़ा व्यापारियों ने जवाबी लेख प्रकाशित करके महिला कुलियों को उचित मजदूरी देने का दावा किया। इला ने अखबार में छपे व्यापारियों के दावों की कई प्रतियां बनवाकर महिला कुलियों के बीच वितरित कर दिया ताकि वे अखबार में छपी मजदूरी की ही मांग करे। इला की इस युक्ति से महिला कुलियों को तो न्याय मिला ही, व्यापारियों की हेकड़ी भी निकल गई।

बाद में इला के साथ सौ महिला मजदूर जुटीं, वह साल था दिसम्बर 1971 का। इन्हीं दिनों में सेल्फ इंप्लायड वूमेन एसोसिएशन का जन्म हुआ। उन्होंने अपने इस संगठन को मजदूर संघ के रूप में पंजिकृत कराने की कोशिश की लेकिन श्रम विभाग ने पंजीकृत करने में साफ इनकार कर दिया। श्रम विभाग का कहना था कि श्रमिक संघ बनाना है तो पहले मलिक का नाम बताया जाए, जहां वे मजदूर नौकरी पर हैं। जबकि ‘सेवा’ की सारी महिलाएं असंगठित महिला मजदूर थीं। उनके पास कोई नियमित नौकरी नहीं थी। इस विषय पर लंबी बहस चलने के बाद आखिर में ‘सेवा’ एक पंजीकृत मजदूर संगठन बन पाया।

साल 1972 में ‘सेवा’ की शुरुआत हुई, जिसकी इला भट्ट महासचिव बनीं। इस संस्था का उद्देश्य अपनी सदस्यों को योग्यता के अनुसार काम दिला कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है।

इला भट्ट ने स्वरोजगार महिलाओं के लिए न सिर्फ यूनियन बनाई, बल्कि उनके विकास के लिए 1974 में ‘सेवा’ सहकारी बैंक की भी स्थापना की, जिसमें महिलाओं की संख्या 30 लाख तक है।

इला भट्ट ने देश में ऐसी सामाजिक, आर्थिक और सहकारिता क्रांति की शुरुआत की, जिससे लाखों महिलाओं ने अपनी आर्थिक सामाजिक स्थिति को मजबूत बनाते हुए देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी शुरू कर दी। उन्होंने स्वरोजगार महिलाओं को न सिर्फ उनके अधिकार दिलाया, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया।

1981 में अहमदाबाद में आरक्षण के नाम पर दंगा हुआ तो पिछड़ी जाति के लोगों पर बर्बर अत्याचार हुआ। ‘सेवा’  ने पिछड़ी और अनुसूचित जाति के लोगों को साथ देकर उन पर होने वाले अत्याचारों का जम कर विरोध किया। इला भट्ट के नेतृत्व में ‘सेवा’ संगठन नारी आंदोलन, मजदूर आंदोलन और सहकारी आंदोलन का संगम बन गया। इसके साथ ही महिला मजदूर संघ के रूप में अपनी अलग सी पहचान भी स्थापित कर दी।

इला रमेश भट्ट का कहना है कि गरीबी एक तरह की हिंसा है जो समाज में सब की सहमति से लगातार बरकरार है।

भारत में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के काम में दशकों से जुटी इला भट्ट की आयु अब 80 साल तक हो गई है। वे राज्य सभा की भी सदस्य रह चुकीं हैं। वर्तमान में भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की एक निदेशक भी हैं।

80 साल के आयु में भी उनका हौसला और हुनर का जजबा आज भी कम नहीं हुआ है। गुजरात से इस काम को अंजाम दे रही इला भट्ट की मदद से अब तक देशभर की लाखों महिलाएं न सिर्फ रोजगार पा चुकीं हैं बल्कि अपने परिवार का भी भरण-पोषण कर रहीं हैं। गांधी विचारों पर चलने वाली इला भट्ट ने सदैव सत्य और अहिंसा के जरिए आंदोलन किया और सफलता की मिसाल कायम की, जो सभी के लिए प्रेरणा भी है।

Back to top button