लेखक की कलम से
मैं दोपाया भेड़ से भी गई गुजरी हूँ …
गलत और सही क्या है
छोड़ चुकी हूँ सोचना
चल पड़ती हूँ पीछे- पीछे
एक भेड़ की भाँती
और जब पूछता है
कोई कहीं मेरा पता
या मेरा नाम,
तो भी मैं बता
नहीं पाती
तब उस पल सोचती हूँ
मैं दोपाया भेड़
उस चौपाया भेड़ से भी
गई गुजरी हूँ
उसके दो सींग तो है कम से कम
जिसे वो मार देती है
अनिच्छा पर
नाराज होने पर
भूखे रहने पर।
©डा. ऋचा यादव, बिलासपुर, छत्तीसगढ़