भाग गयी लड़कियाँ ….
लड़कियां भाग गयी इस शब्द का प्रयोग शर्मनाक है। लड़की या लड़के ने प्रेम विवाह किया ये कहने में क्या जाता है? जब माता पिता बेटी की शादी करते हैं तो कहते है विदाई कर दी! लड़कियां अपने घर रहती ही कब हैं। पराई होती हैं। लेकिन जब लड़की प्रेम विवाह कर ले तो कहा जाता है लड़की भाग गयी, इतने गंदे शब्दों से नवाज़ा जाता है। क्या लड़कियों को अपनी पंसद से शादी करने का अधिकार नहीं? माता पिता की पसंद से शादी को ही विवाह माना जाता है, लेकिन बच्चे अगर माता पिता के खिलाफ जाकर विवाह करते हैं तो अपराध बन जाता है।
जब लड़कियों को विदाई कर के ससुराल भेजा जाता है तो मान की बात होती है अगर प्रेम विवाह किया तो अपमान की, जो कि सजा के तौर पर जीवन भर बेटी को भुगतान पड़ता है।
अगर हर माता पिता सही गलत का चुनाव करके लड़के -लड़की के परिवार की जानकारी करके प्रेम विवाह में शामिल हों तो ये अपराध और अपमान दोनों की संख्या कम हो सकती है ।
अपने बच्चों को अच्छे संस्कारों से नवाज़ा हो तो माता पिता के खिलाफ खड़े होनें का निर्णय न लेते, वो न हो। जब माता पिता अपनी पसंद से बेटी का विवाह करते हैं तो एक जिम्मेदारी निभाने की बात करके विदा कर देते है मगर जब ससुराल में उसके साथ गलत व्यवहार होता है या सताया जाता है तो माता पिता भी यही कहते है बेटा थोड़ी बहुत तो अनबन हो ही जाती है तेरी डोली तो उठा दी अब अर्थी ससुराल से जाती है ।
कभी कभी तो ऐसी नौबत आती है कि जीवन भर स्त्री अर्थी बन कर ससुराल में जीती है कोई उसे मायके की अपेक्षा ही नहीं होती। और बेटियाँ मर जाती है अपने परिवार और पति का सम्मान बचाने में। ऐसे रिश्तों को किस नाम से पुकारा जाये। बेटियाँ भी बेटों के साथ पैदा होती है उन्हें भी उतना हक़ देना चाहिए कि अपने निर्णय लेकर जी सके। माता पिता भाई सभी को सही गलत का फैसला लेना चाहिए। बच्चे गलत तब नहीं होते जब उन्हें सपने जीने का अधिकार देते है मगर तब गलत हो जाते है जब वो अपने सपने जीने का हक़ मांगते हैं। उनकी परवरिश दोस्तों सी करो कि कहीं और जीवन ढूंढने के लिये विवश न हों । ना ही जिन्दगी को मज़ाक बनने दें।
उनका हक़ उन्हें देना चाहिए। मगर अच्छे बुरे की पहचान करने के लिये माता पिता को साथ देना होगा तब बदलेगी रिश्तों की पहचान।
अगर माता पिता अपनी बेटियों को अपनी मर्जी से शादी करते हैं तो उनका स्वाभिमान बना रहेता है
ऐसा क्यूँ ..?
कुछ बेटियों का उत्पीड़न मानसिक तौर पर किया जाता है जो समाज के सामने नहीं आता उस उत्पीड़न का को सबूत या गावहीं नहीं होती और जीवन में उस पीड़ा को सहती रहती है
कभी माता पिता के सम्मान बचाने के लिये कभी बच्चों को बचाने के लिये.?
तब माता पिता यह नहीं सोचते कि मैंने गलती की ऐसी शादी करके उस वक़्त बेटी की शिकायत करने पर बोलते हैं कि थोड़ा बहुत तो होता है आपको सम्हालना होगा परंतु जब सीमा से बाहर होने पर ही बाद विवाद बढ़ने लगता है तब उन्हें समझा जाता है, तब तक बहुत कुछ खो जाता है!
©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी