कोरोना की कैद में बच्चे …
लघुकथा
“हेलो “ ?
“हाँ हेलो लड्डू ,कैसी है मेरी गुड़िया” ।
“मैं ठीक हूँ राज नानी, आप और नानू कैसे हैं”?
“हम भी ठीक हैं”, राज ने कहा।
“अपना ख्याल रखना , गर्म पानी पीती हो या नहीं” ?
“पी रहे हैं लड्डू रानी “, राज ने चार साल की नातिन की बात पर मुस्कुराते हुए कहा।
“गुड , बाहर से आकर अच्छे से हैंड वाश किया करो और मास्क लगा कर ही मार्केट जाना”, लड्डू ने आदेश भरे लहजे में कहा।
“ओके बेटा जी , हम पूरी सावधानी बरत रहे हैं और तुम बताओ क्या कर रही हो” ,राज ने बात बदलते हुए पूछा।
“मैं ..मैं तो ड्राइंग कर रही हूँ “।
“अरे वाह ! क्या बना रही हो “।
“मैं बना रही हूँ प्लेग्राउंड ,फुटबॉल और खूब सारे बच्चे “,लड्डू ने चहकते हुए कहा।
“क्या तुम्हें फुटबॉल खेलना पसंद है”, राज ने दुलारते हुए पूछा ।
“हाँ बहुत पसंद है ,लेकिन अभी बाहर कोरोना है ना ,इसलिए प्लेग्राउंड में खेलने नहीं जाती हूँ, क्या आपको नहीं पता नानी !,वो घर से बाहर निकलते ही अटैक कर देता है, बैड वायरस है ना , जब कोरोना खत्म हो जाएगा तब मैं खूब खेलूंगी उस बड़े से प्लेग्राउंड में” …,चमकती हुई आंखों से लड्डू ने खिड़की के पार देखते हुए कहा।
“हाँ मेरे बच्चे खूब खेलना”।
“फिर मैं आपसे और नानू से भी मिलने आऊंगी नानी, ओके बाय बाय लव यू ” ।
राज का गला भर आया शब्द मुंह में ही अटक से गए।
बस मन ही मन में इतना ही कह पाई , ” हमें माफ कर दो बच्चों , तुम्हारे कैद बचपन के हम सब गुनहगार हैं, काश! समझा होता प्रकृति के दोहन का परिणाम , समय रहते संभल गए होते तो आज आजाद होता तुम सबका बचपन…।
©चित्रा पवार, मेरठ, यूपी