लेखक की कलम से

नमकीन नदी – स्त्रियाँ …

 

स्त्रियाँ जानती हैं कीमियागिरी

वे धागे को मन्नत में

काजल को नज़र के टीके में

नमक को ड्योढ़ी में रख

इंतज़ार काटना जानती हैं

 

वे मिर्ची और झाडू से उतारतीं हैं बुरी बला

अपनी रसोई में खोज लेतीं हैं संजीवनी

कई बीमारियों का देतीं हैं रामबाण इलाज

अपनी दिनचर्या के वृत्त में भी

साध लेतीं हैं ईश्वर की परिक्रमा

माँग लेतीं हैं परिवार का सुख

कभी – कभी वे ओढ़तीं हैं कठोरता

दंड भी देतीं हैं अपने इष्ट को

रहते हैं वे कई प्रहर जल में मग्न

 

सारे संसार को झाड़ बुहार

आहत होतीं हैं अपनों के कटाक्षों से

तब, तरल हो रो लेतीं हैं कुछ क्षण

दिखावे के लिए काटतीं हैं ‘प्याज’

*है ना ! प्रिय स्वरांगी*

 

प्याज के अम्ल से तानों के क्षार की क्रिया कर

वे जल और नमक बनातीं हैं,

जिसमें तिरोहित करतीं हैं अपने दुःख

बनती जातीं हैं नमकीन

तुम पुरुष, जिसे लावण्य समझते हो !

*-स्वरांगी साने की चर्चित कविता प्याज*

©विशाखा मुलमुले, पुणे, महाराष्ट्र

Back to top button