लेखक की कलम से

IFWJ और अयोध्या मुद्दा …

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इस त्रिदिवसीय अधिवेशन को संबोधित करने वालों में इंदिरा गाँधी काबीना के मंत्री स्व. नारायणदत्त तिवारी (उद्योग), स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह (वाणिज्य), स्व. वी.एन. गाडगिल (संचार) और आरिफ मोहम्मद खान (सम्प्रति केरल गवर्नर) थे।  उद्घाटन यूपी के मुख्यमंत्री स्व. श्रीपति मिश्र ने किया था।  उनके साथ पं. लोकपति त्रिपाठी तथा प्रमोद तिवारी आये थे।

विदेशी प्रतिनिधि भी आये थे।  अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संगठन (IOJ, प्राग) के अध्यक्ष डॉ. कार्ल नोर्देर्नस्ट्रांग, ब्रिटिश नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष जॉर्ज फिंडले (स्कॉटलैंड), जर्मन पत्रकार यूनियन के महामंत्री डॉ. मैनफ्रेड वाईगैंण्ड तथा ऑस्ट्रिया और नेपाल के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।  कई पर्यवेक्षकों की राय में इतना बड़ा विश्व स्तरीय सम्मेलन किसी भी आंचलिक इलाके (अयोध्या) में अभी तक कभी नहीं हुआ।

ज्ञात हुआ कि IFWJ के अयोध्या सम्मेलन के बाद रामजन्म भूमि पर कई संघर्षशील कार्यक्रम हुए।  विश्व हिन्दू की धर्म संसद की उसी वर्ष ठीक ढाई माह बाद (अक्टूबर 1984) संपन्न सभा में रामजन्मभूमि न्यास स्थापित हुआ।  फिर छः वर्षों बाद सोमनाथ-अयोध्या रथयात्रा द्वारा (1977 में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे) लालचंद किशिनचंद आडवाणी ने संघर्ष को तीव्रता दी।

यूं तो IFWJ शुद्ध रूप से व्यावसायिक मीडिया संगठन है जिसमें नक्सली (झारखण्ड –छत्तीसगढ़), कांग्रेसी (आंध्र), भाजपायी (महाराष्ट्र), समाजवादी (बिहार और उत्तर प्रदेशीय), जनतादलीय (कर्णाटक) इत्यादि भिन्न विचारधाराओं वाले श्रमजीवी पत्रकार हैं।  मगर लक्ष्य सबका केवल यही है कि स्वच्छ पत्रकारिता मजबूत हों।  कमजोरियां कम करें।  संगठन व्यापक बने ।  हर जनांदोलन में IFWJ की भागीदारी क्रियाशील हो।

 

    ©के. विक्रम राव, नई दिल्ली   

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