लेखक की कलम से

नश्वरता …

मैं थी तुम्हारी …..
मेरे दिल में था प्यार
आना था तुम तक
ये कहां मुड़ गया ???

भावों की रूई धुन
काते थे सपने
फेंकी प्रेम डोर तुम्हें
कोई और जुड़ गया…

जीवन है सतही
नश्वर शरीर है आधार
प्रेम है कपूर सा
झट से उड़ गया !!

 

©दीप्ति गुप्ता, रांची, झारखंड

 

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