लेखक की कलम से
घुले फाग में…
घुले फाग में हौले-हौले
नेह प्रेम के रंग रुपहले
चौराहे पर लगी होलिका
पूजन को नर-नार चले
गेहूं की ले पकी बालियां
गूंथ माला में चाँद बुरकले।
सेलखड़ी की उड़ती पुड़िया
झोली भरी अबीर से
टेसू का रंग सुर्ख हुआ
पिचकारी के रंग रंगीले।
नख शिख भीजे घूमें सारे
धनक से रंग उधार लिए
टोली बना मोहल्ले वाली
मस्ती में हुरियारे चले।
ढोल ढमाके, गीत सुरीले
गुजिया, मठरी कांजी-वड़े
चटखारों संग बात, बुझौनी
साँझ ढले सब निकल पड़े।
हवा फागुनी लट में उलझी
लजा राधिका लाल हुई
कान्हा की जो पड़ी नज़रिया
मुख पर सारे रंग खिले।
©भावना सक्सैना, फरीदाबाद, हरियाणा