लेखक की कलम से

ऐसा भी होगा….. आज़ इतना ही

ऐसा भी होगा कभी यहाँ
फिर दर्द तराने लिखेंगे-
फिर पीर फ़साने गायेगी।

कुछ ज़ख़्म पुराने दिल पर फिर
चुपके से आकर घूमेंगे
कुछ सपने गीली आँखों को
चुपचाप अकेले चूमेंगे
घुटनों पर सर रख कर अपना
तब प्यार सिसक कर रोयेगा

राँझें की लाश अकेली ही –
जब हीर उठाने आयेगी।
फिर दर्द तराने लिखेंगे-
फिर पीर फ़साने गायेगी।

© कृष्ण बक्षी, इंदौर

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