लेखक की कलम से
मैत्री सूत्र …
मैत्री सूत्र
ईश्वर ने बांधा है
आत्मा का देह से !
बिभाजित हमने किया
उसे,
संकीर्णता से,
‘वे’
तो हम संग हैं!
प्रतिपल,
प्रतिधड़कनों में ….
बंधे हैं सांसों की डोर संग
वे अभिन्न ,अटल,असीम,अशेष,अभेद अनंत हैं।
समाहित है हमारी अंतरात्मा में! अनभिज्ञ हम
पर
अपृथक अंश हैं
“वे”
हमारी रूह में,
कर्मों में,
सर्वाधिक, सर्वदा प्रतिबिम्बित हैं!
मुझसे लेकर कायनात तक
वे ही वे है!
जरा देखो ना….
महसूस किया है
“मैंने”
अल्पना की कलम से
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता