लेखक की कलम से

पथिक का कर्म पथ …

 

कर्म ही सबका लेख जोखा,

कर्म के पथ पर चलता चल।

जीवन है दुख सुख का साथी,

गिरता और संभालता चल।

 

घना तिमिर हो चाहे जितना,

अपनी मंजिल चढ़ता चल।

पथ में आएं चाहें काँटे जितने,

उन पर आगे बढ़ता चल ।

 

एक दिन डगर सरल भी होगी,

मन मेँ ये विश्वास भी रख।

पर्वत के जैसे अडिग रहे और

सदा अनवरत तू चलता चल।

 

सदा रहो कर्तव्यनिष्ठ तुम,

छल कपट तुम करना मत।

बस धर्म कर्म ही साथ है रहता,

इस  लक्ष्य को  लेकर चल।

 

©मानसी मित्तल, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश   

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