लेखक की कलम से

स्वभाव …

 

व्यक्ति स्वभाव से सुविधाभोगी होता है।

जब हम स्वयं सुविधाभोगी हैं तो किसी अन्य की सुविधा में दुविधा उत्पन्न करने का हमे कोई अधिकार नहीं।

मैं व्यक्तिगत तौर से कोई भी काम स्वार्थवश नहीं करती, निष्पक्षता मायने रखती है, अगर मैं किसी को भी सहायक हो सकती हूं तो वह काम मैं बेहिचक कर देती हूं, अगर आपकी नीयत साफ़ है तो, प्रगति के आड़े कोई भी बात नहीं आ सकती, किसी को भी आगे बढ़ाने के लिए अगर हम माध्यम बन सकते हैं तो मुझे श्लेष मात्र भी तकलीफ़ नहीं, कहते हैं हर एक के बस में नहीं होती यह हिम्मत, वैसे भी कहते हैं कि मेरा सबसे अच्छा औऱ पर मुझसे अच्छा किसी का नहीं, यह सत्य है माने या माने, और मेरी व्यक्तिगत राय। अपनी तरफ़ से #the_best दो।

कोई भी काम मन से करो, यदि एक % भी मन में न करने की इच्छा हो तो आगे बढ़े, क्योंकि जो काम या दुआ मन से नहीं निकलते वे फ़लीभूत नहीं होते। अपने अपने हर कार्यक्षेत्र मे प्रतिद्वंद्वी होते हैं, और प्रतिस्पर्धी भी, किन्तु स्पर्धा सकारात्मक नहीं हो तो युद्ध होता हैं फिऱ वहां स्पर्धा के मायने खत्म हो जाते हैं।

अंत में शिक्षा और सीखने के लिए व्यक्ति का #याचक होना बहुत ज़रूरी।

तो बस विधार्थी बन ताउम्र पढ़ते रहें वह भी मन लगाकर, आगे बढ़ते रहे, और आप अगर किसी को आगे बढ़ाने में मदद कर सके तो ज़रूर निष्पक्ष और निश्छल मन से हाथ थामे, क्योंकि हम भी एक माध्यम ही होते हैं, सरल शब्दों में एक दूसरे के पूरक।

तो सोचे नहीं बन जाइए माध्यम या फिऱ ज़रिया क्योंकि प्रतिद्वन्दी और प्रति स्पर्धा से बेहतर हैं यह????

तो? इसी बात पर चलिए कुछ मीठा हो जाए सुना है आज #चॉकलेट_डे भी हैं …

 

©सुरेखा अग्रवाल, लखनऊ

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