लेखक की कलम से
प्रेम समर्पण …
मदिरा घट प्रेम को अंग लिए
कटि संग मे राधा लगाइ रह्यौ,
हरि प्रेम निमंत्रण देन लगे
तब अंग अनंग समाइ गयो।
चिबुकन को धर्यो मन प्रेम भर्यो
वृषभानु सुता ह्वै लजाइ रह्यौ,
जब देह के जाल से छूट गई
तब कृष्ण मे राधा समाइ गयो।।
©दिलबाग राज, बिल्हा, छत्तीसगढ़