लेखक की कलम से

नवरूप धारिणी माँ…

जग जननी सृष्टिधात्री सिंह पर आरूढ़ हो

 

विभिन्न आयुधों से सज्जित नवरूप धारिणी।

 

 

अनंत फल दायिनी शंकर प्रिया नमन तुझे

 

तपस्विनी है मात तू ही सत्य ब्रह्मचारिणी ।

 

 

ललाट चंद्रमा धरे  स्वरूप शान्तिदायिनी

 

कुपित हो धरा डोलती हे घंट वज्रधारिणी।

 

 

मुस्कान मंद मंद कर कूष्मांड सृष्टि रच रही

 

अमृत कलश धारण करे सूर्य लोक वासिनी।

 

 

षठमुखी स्कन्द पुत्र  अंक का श्रृंगार है

 

मोक्ष द्वार खोलती  संसृति भव तारिणी।

 

 

मुद्रा अभय की दे रही आशीष माँ कात्यायनी

 

संताप, रोग ,दोष  हरे दुष्ट दलन  घातिनी ।

 

 

काल रात्रि  कालिके गले में रुंड मुंड माल है

 

क्रोधाग्नि से मर्दन करे महिष असुर घातिनी।

 

 

महालक्ष्मी तू पद्मजा कमल पर है विराजती

 

सरस्वती का रूप सिद्धिदात्री चक्रधारिणी ।

 

 

गौरांग श्वेत वर्ण श्वेत वृषभ  पर आरूढ़ हो

 

अर्धांग शिवा रूप माँ डमरू त्रिशूल धारिणी ।

 

-मधुश्री,पुणे महाराष्ट्र

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