लेखक की कलम से

खुशनुमा हयात में …

ग़ज़ल

 

मैं अपनी कहानी ज़ुबानी क्या बताऊं

है मेरी आंखों में जो पानी क्या बताऊं

 

जैसे भी गुजरी है गुज़र गई अब मेरी

गुजरी है कैसे कैसे जिंदगानी क्या बताऊं

 

देखा है ता उम्र हकीकत का आइना

मुझ पे हुई है कितनी महेरबानी क्या बताऊं

 

ग़म में गुजार ली या खुशी में गुजार ली

अब बीती अपनी यादें सुहानी क्या बताऊं

 

वो छोड़ गया मुझको वीरान राहों में

कहता था मुझको अपनी रानी क्या बताऊं

 

है रंग फीका अब मेरी जुल्फें सफेद है

मैं कैसे रहती थी जवानी क्या बताऊं

 

ग़म भी कभी आएगा खुशनुमा हयात में

न सोचा कभी ऐसा कहानी क्या बताऊं

 

मै इश्क़ मुहब्बत पे भरोसा नहीं करती

दुनिया तबाह है इसमें वीरानी क्या बताऊं

 

©खुशनुमा हयात, बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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