लेखक की कलम से

अपना हाथ जगन्नाथ ….

चलो उठो खाना खा लो। सुबह से कुछ नहीं खाया है, इस तरह खाना ना खाने से या परेशान होने से हमारी समस्या का समाधान नहीं होगा जी।कहते हुए लक्ष्मी ने अपने पति नारायण का हाथ पकड़कर परोसें हुए दाल भात की तरफ इशारा किया। नारायण भी बेमन से भोजन करने बैठ गया।

कोरोना के चलते नारायण की नौकरी चली गई। नारायण एक छोटे से स्कूल मे बस ड्राइवर की नौकरी करता था। हालांकि शुरू के तीन महीने स्कूल की तरफ से आधी तनख्वाह भी दी गई, लेकिन तनख्वाह आधी हुई थी खर्चे तो पूरे ही थे।हाथ तंग रहने लगा, मानसिक तनाव बढ़ता गया….

 

उसकी पत्नी लक्ष्मी बहुत ही सुघड़, कर्मठ व मेहनती थी।वो अक्सर अपने पति से कहती क्यो‌ अफसोस करते हो जी, नौकरी का क्या है आज है कल नहीं , क्यो ना कोई छोटा मोटा ही सही अपना काम शुरू करते है।आत्मसम्मान व आत्मनिर्भर बनने का ये सही समय है।

 

क्योंकि अपना हाथ जगन्नाथ होता है जी…

कहो तो मै दही बड़े बनाऊं? आप ही तो कहते है तेरे हाथों के दही बड़े का जबाव नही।

 

पहले तो नारायण तैयार नहीं था लेकिन परिस्थिति वश हां करदी। पहले पहल संकोच हुआ लेकिन पहले दिन से ही काम की शुरुआत बहुत अच्छी हुई। दोनो का हौसला बढ़ गया। दोनो सुबह सुबह उठते लक्ष्मी दाल पीसती तो नारायण लाल को फेंटता।

 

इस तरह दोनो कोरोना नियमों का पालन करते हुए मास्क लगाकर, पूरी सफाई के साथ ग्राहकों के हाथ भी सेनेटाइज कराते हुए काम करते रहे।

 

थोड़े ही दिनों मे खर्चे पूरे होने लगे, थोड़ी बहुत बचत भी होने लगी।छोटे मोटे ऑर्डर भी मिलने लगे। क्योंकि ईश्वर तो बहुत दयालु है और मेहनती कभी भूखा नहीं रहता।

 

आज नारायण बहुत खुश था, क्योंकि आज वो कहीं नौकरी नहीं कर रहा बल्कि मालिक है अपने काम का। आत्म निर्भर है।

उसने लक्ष्मी का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, तू तो सही में लक्ष्मी है री, तूने तो मुझे नौकर से मालिक बना दिया, तूने सब संभाल लिया।

तू सही कहती रही…

 

अपना हाथ जगन्नाथ..

 

और दोनों प्रसन्न मुद्रा में एक दूसरे का हाथ अपने हाथ मे लिए आकाश में बढ़ते हुए चांद को अपना आकार पूरा करते हुए देखने लगे …….

 

उपरोक्त कहानी

सत्य घटना पर आधारित है

 

 

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

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