लेखक की कलम से

हम-तुम जैसे बन जाएँगे …

आज बच्चों को शोर मचाने दो

कल जब ये बड़े हो जाएँगे

ख़ामोश ज़िंदगी बिताएँगे

हम-तुम जैसे बन जाएँगे

 

गेंदों से तोड़ने दो शीशें

कल जब ये बड़े हो जाएँगे

दिल तोड़ेंगे या ख़ुद टूट जाएँगे

हम-तुम जैसे बन जाएँगे

 

बोलने दो बेहिसाब इन्हें

कल जब ये बड़े हो जाएँगे

इनके भी होंठ सिल जाएँगे

हम-तुम जैसे बन जाएँगे

 

दोस्तों संग छुट्टियों मनाने दो

कल जब ये बड़े हो जाएँगे

दोस्ती-छुट्टी को तरस जाएँगे

हम-तुम जैसे बन जाएँगे

 

भरने दो इन्हें सपनों की उड़ान

कल जब ये बड़े हो जाएँगे

पर इनके भी कट जाएँगे

हम-तुम जैसे बन जाएँगे

 

बनाने दो इन्हें काग़ज़ की कश्ती

कल जब ये बड़े हो जाएँगे

ऑफ़िस के काग़ज़ों में खो जाएँगे

हम-तुम जैसे बन जाएँगे

 

खाने दो जो दिल चाहे इनका

कल जब ये बड़े हो जाएँगे

हर दाने की कैलोरी गिनाएँगे

हम-तुम जैसे बन जाएँगे

 

रहने दो आज मासूम इन्हें

कल जब ये बड़े हो जाएँगे

ये भी “समझदार” हो जाएँगे

हम-तुम जैसे बन जाएँगे…

©रामजतन मौर्यवंशी, बनारस

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