लेखक की कलम से

जिंदगी यही है. . .

 

जिंदगी जब गलियों

 

चौराहों

 

और सड़कों पर

 

गुजरती, दौड़ती, भागती

 

थक जाये.

 

बरतनों की खनक,

 

कुकर की सीटियों

 

और देग की खदबदाहट से

 

पक जाये.

 

रुक कर,

 

ठिठक कर सोचना,

 

आलमारी के खानों

 

या दराज में न खोजना.

 

जिंदगी तुम में ही

 

कहीं मुस्कुरा देगी.

 

खिड़की से आती धूप

 

तब बता देगी…

 

कि

 

जिंदगी यही है

 

जिंदगी यहीं है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button