लेखक की कलम से
वजूद …
तुम पुरुष / तुम सभी कुछ
मैं औरत / मैं कुछ भी नहीं
तुम जन्मे /तुम्हारे अपने सब
मैं पराई / माँ -बाप के लिए
मैं गैर / सास -ससुर के लिए
मेरा घर / कहीं नहीं
मेरा अपना / कोई नहीं
तुम पुरुष / सारी दुनिया तुम्हारी
मैं क्या ?
मेरा कुछ वजूद नहीं ?
पुरुष हो तुम / तो क्या ?
मैं कठपुतली तो नहीं |
बनाऊँगी मैं वजूद अपना
सच करूंगी हर सपना
तोडूंगी बाधाएँ
मैं कुछ कर दिखाऊंगी
दुनिया में आगे निकलकर
नाम से / महान कहलाऊँगी
हर औरत की मैं
पहचान बन जाऊँगी
हाँ ! मैं औरत
मेरा भी वजूद है
मेरा वजूद है |
©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़