लेखक की कलम से
संयम …
कुछ अनकहे मोती …
कुछ अनछुए लम्हें …
हृदय के हृदय में ही …
अन्तिम श्वास भरते है …
न वो पृष्ठो पर …
न वो जुबां पर ही …
मस्तिष्क से हृदय का ही …
सफर तय वो करते है …
मचलती तो है आशाएं …
थिरकती है ख्वाहिशें भी …
जुबां से अधर तक ही …
लगा कईं साल देते है …
गले कुछ रुंध से जाते है …
पकड़ संकोच का दामन …
अधर भी साध चुप्पी को …
नहीं कभी तोड़ पाते है …
बहते भाव के दरिया …
शिकवो का पिटारा भी …
नहीं अवयक्त वयक्त करते …
जो दिल में ठान लेते है …
स्वर्णिम से सोने को …
जागकर त्याग देते है
साधते योग से स्वयं को …
वे शिव का नाम जपते है …
अति कमज़ोर मनसूबें …
नहीं वो साथ रखते है …
वे जन उत्थान है करते …
पतन को मात देते हैं …
©सुधा भारद्वाज, विकासनगर, उत्तराखंड