लेखक की कलम से

बूढ़े पेड़ की व्याकुल पीठ पर …

रेत के चमकीले एक कण में पूरी दुनिया का प्रतिबिम्ब देखने के लिए,

और एक जंगली फूल में इत्र की खुशबू से लिपटे पहाड़ देखने के लिए,

अवसाद की मुट्ठी को खोलकर आज़ाद हथेलियों पर अनंत के कण को पकड़ना होगा..

अगोचर विश्व की गतिविधियों को सुनने के लिए,

सीने में छुपे मशीन के कान खोलकर फ़लक की हर शै से बजता संगीत सुनना होगा..

रूह नाचने लगेगी जब आसमान में खिलखिलाते तारों की बादलों संग अठखेलियां देखते आप के लब मुस्कान से बातें कर रहे होंगे..

महसूस होगी एक महक बूंद गिरेगी जब शीत पहली बारिश की सूखे तप्त जंगल के बूढ़े पेड़ की व्याकुल पीठ पर..

या रोम रोम झंकृत होते जब बांसुरी की तान छेड़े तब समझ लेना आख़री सांसे लेती धरा पर जामुनी शाम के ढलते ही अमन के फूल खिले हैं..

तब एक अनुगूंज उठेगी सबकुछ मुमकिन है गर हर सीने में धड़कता मशीन समझदार होगा

तब कायनात की हर चीज़ महसूस करने के काबिल हर इंसान होगा।।

©भावना जे. ठाकर

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