अन्तर्मन में द्वंद छिड़ा है …
अन्तर्मन में द्वंद छिड़ा है मन वेदना किसे सुनाऊ आज।
कृष्ण नही हैं आने वाले सुलह किससे कराऊँ आज।।
शांतिदूत बना किसको भेजूं इस दुर्योधन के कट्टर विचार।
राज पाट की बात न पूछो इनके तो कलुषित विचार।।
युद्ध भूमि मध्य रथ खड़ा है गांडीव नीचे कर पार्थ खड़ा।
सकुनी के कुटिल मुस्कान संग पूरा रणभूमि डूबा पड़ा।।
गंगा पुत्र भी विवश खड़े इस द्वंद युद्ध का होने शिकार।
आओ अर्जुन वेध डालो तुम सामने खड़ा तेरा शिकार।।
द्वंद अब धर्म और पुत्र में विवश द्रोण अब रथ सवार।
पुत्र मोह के इस पचड़े में आओ कर दो शर पर वार।।
अंतर्मन के द्वंद युद्ध का केवल निकले दो परिणाम।
हावी अगर स्वार्थ सिद्ध तो निकलेगा बस गलत परिणाम।
इस द्वंद युद्ध के टकराव में जीत अगर हो मन का साथ।
बैर भाव और वैमनस्य से झुटकारा मिल जायेगा आप।।
इक बार फिर विजय पताका फहरेगा फिर अपने आप।
उस लीलाधर के अवतार की जरूरत खत्म हो जाएगी अपने आप।।
©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद