लेखक की कलम से

हास्य योग करें- प्रसन्न रहें- स्वस्थ रहें

लेख

आजकल लोगों में योग के प्रति अभिरुचि बढ़ रही है, जिसका कारण यह है कि योगासनो के अभ्यास से स्वास्थ्य ठीक रहता है । आम जन धारणा यही है कि आधुनिक युग की अनेक व्याधियों, का उपचार एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली में नहीं है , वह आसन और प्राणायाम के नियमित अभ्यास से ठीक हो जाता है । किन्तु योग पूर्णतः चिकित्सा प्रणाली नहीं है । इसे लोगों को समझना चाहिए । कोई भी रोग या व्याधि के लिए हमें डॉक्टर के पास जाना ही होता है । सत्यता तो ये है कि योगासन अपितु साधना का स्वाभाविक परिणाम है। योग आत्मसाक्षात्कार या अपनी अंतरात्मा से एकाकार होने की विद्या है यही मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य है । महर्षि पतंजलि ने अपने ‘योग दर्शन ‘ में योग को चित्त वृत्तियों का निरोध कहा है — ” योगः चित्त वृत्ति निरोधः ” ….. चित्त की वृत्तियों का निरोध होने पर पुरुष की अवस्था होती है —-” तदा द्रष्टु: स्वरुपेsवस्थानम “—(तब दृष्टा अपने स्वरूप में अवस्थित हो जाता है ) । यही आत्म साक्षात्कार है ।

आत्म साक्षात्कार किए हुए ऋषियों ने अपने अनुभव से इसके लिए जो पद्धतियां निर्धारित की हैं उनमें प्रमुख हैं भक्तियोग , ज्ञानयोग , कर्मयोग , और राजयोग ।इस पर टकराव नहीं है क्योंकि सबका लक्ष्य एक है। साधना भेद से यद्यपि एक ही प्रधानता रहती है किंतु अन्य तीन पद्धतियों का भी अन्तर्भाव प्रत्येक पद्धति की साधना में रहता है।योग हमारे शरीर, मन, भावना एवं ऊर्जा के स्‍तर पर काम करता है। कर्मयोग,- जहां हम अपने शरीर का उपयोग करते हैं; भक्तियोग, जहां हम अपनी भावनाओं का उपयोग करते हैं; ज्ञानयोग, जहां हम मन एवं बुद्धि का प्रयोग करते हैं और क्रियायोग, जहां हम अपनी ऊर्जा का उपयोग करते हैं।

अब आजकल योग का एक अन्य प्रकार या कह लें पद्धति को शामिल कर लिया है । वो है —“हास्य योग ” .. या लाफ्टर योग । किन्तु मेरा विचार है कि हास्य योग आपकी मस्तिष्क कोशिकाओं में एंडोरफिन नामक रसायन उत्पन्न करके कुछ ही मिनटों में आपके मूड को बदल देता है। ऐसा होने पर आप दिनभर खुश और अच्छे मूड में रहेंगे तथा सामान्य से अधिक हसेंगे। विचारणीय प्रश्न ये कि अच्छे समय में हर कोई हंस सकता है, लेकिन चुनौतियों से घिरा होने पर कर कोई कैसे हँस सकता है? दरअस्ल लाफ्टर एक सकारात्मक मानसिक अवस्था बनाने में मदद करता है ताकि आप नकारात्मक स्थितियों और नकारात्मक लोगों का सामना कर सकें।मेरा विचार है कि प्रसन्नता बाहर से नहीं आती , बल्कि यह हमारी भीतरी अवस्थाओं पर निर्भर करती है । खुश रहने का सुंदर उपाय यह है कि हम अपने विचारों को वश में रखें कोई भी वस्तु अच्छी या बुरी नहीं होती विचार ही उसे वैसा बना देते हैं।क्या बालपन में हास्य योग की जरूरत होती है ? नहीं न !! तो कभी कभी अपने मन को भी बच्चा बना लें । हंसी और खुशी दोनों आपके पास होगी ।

डॉ सैंडल लिखते हैं -“हजारों आदमी कल्पित जंजीरों में जकड़े हैं उन्हें कोई वास्तविक शारीरिक रोग नहीं है उनकी बीमारी का एकमात्र कारण उनकी ‘ आध्यात्मिक ,पंगुता ‘ है । ” यदि जीवन की वास्तविक और सशक्त बात सोचें तो इन काल्पनिक निर्बलताओं के लिए मस्तिष्क में कोई स्थान नहीं रहेगा ।प्रसन्न रहने के लिए ईर्ष्या की भावना को तिलांजलि दीजिए। अपने में जीना अपने में मस्त रहना सीखिए आप स्वयं अपने आप को कुछ बना सकते हैं आपको क्या करना है कैसे करना है किस तरह आगे बढ़ना है सही दिशा निर्धारित कर उसके बारे में सोचिए । आपके भीतर ही एक कल्पवृक्ष है उसको पहचानिए और फिर अपना सामर्थ देखिए। खुश रहने का गुण ऊपर से ओढ़ा नहीं जाता , बल्कि इसकी आदत डालिए। और इसके लिए बहुत जरूरी है कि आप अपनी आलोचना धैर्य से सुने ।अपनी आलोचना सुनते ही भड़क ना उठे , किसी पर नाराज होने पर या नफरत करने पर या चिढ़ जाने पर हमारे शरीर के सेल युद्ध की स्थिति में हो जाते हैं और शरीर की सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है ।इसलिए यदि हम प्रसन्न और खुश रहना चाहते हैं तो हमें घृणा , स्पर्धा को मन से दूर रखना चाहिए । ऐसा न करने पर मन की शांति कुण्ठित हो सकती है । हमारे शरीर का प्रत्येक सेल एक चित्र बनाता है और विचारों को मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित करता है और उस से अच्छा या बुरा प्रभाव ग्रहण करता है । सब कुछ आपको मिल जाए यह भावना उचित नहीं है ईश्वर ने सब कुछ आपको ही देने का ठेका नहीं ले रखा है और लोग भी हैं । इसलिये जितना मिला है या मिल रहा है उसी को ईश्वर का उपहार समझकर सहेज कर रखें और प्रसन्न मन से अपने आराध्य को धन्यवाद दीजिये । यदि आप प्रसन्न हैं तो निसंदेह आपसे सब लोग बात करना पसंद करेंगे आप दूसरों पर ऐसी छाप छोड़ सकते हैं कि एक लंबे समय तक दूसरा व्यक्ति आपको भूले नहीं प्रसन्न रहने से एक बहुत बड़ा लाभ यह है कि आपको जीवन शैली बड़ी सहज हो जाती है जीवन जीने में आनंद आता है सुख मिलता है और आसपास का वातावरण ऊर्जा युक्त लगता है अधिकांश व्यक्ति इतने प्रसन्न होते हैं जितने प्रसन्न होने का भी निश्चय कर लेते हैं यदि प्रसन्न रहने का संकल्प धारण करना चाहते हैं तो यह बात मन में ही ना लाए , जो आप अनजाने में भी व्यक्त नहीं करना चाहते ।

अगर मगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो स्वस्थ विचार अपने मन में धारण करें । आप जैसा बनना चाहते हो सिर्फ वैसा ही विचार मन में लाओ । हो सकता है जो शुरू में प्रसन्न रहने के लिए कुछ प्रयास करना पड़े कुछ उलझन और परेशानी भी लगे पर आप अटल रहिए । धीरे धीरे प्रसन्न रहना आपका स्वभाव बन जाएगा और आपको हंसने के लिए किसी योग या व्यायाम की आवश्यकता ही नहीं होगी ।

**तो फिर हो जाये एक ठहाका मेरे साथ — !!

डॉ. निरूपमा वर्मा, एटा(उ.प्र.)

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