लेखक की कलम से

कैसे पता चले सच्चा प्यार है या नहीं…..

1-सच तो ये है प्यार कोई सोंच समझ कर नहीं करता… प्यार तो खुद अपने आप हो जाता है । जो सोंच विचार के करता है वो प्यार नहीं अपना स्वार्थ सिद्ध करता है ।

2- कोई कैसे जानते हैं….मैं कितना चाहता हूं,या चाहती हूं, ठीक है आप किसी को बहुत चाहते हो, सामने वाला भी दिल से आपके प्यार को स्वीकार कर लिया है और अटूट विश्वास भी करने लगा है …पर आप खुद ही गलतफ़हमीं के शिकार हो कि आपका प्यार सच्चा है । ये कुछ दिनों के लिए आकर्षण हो सकता है जो आप खुद समझ नहीं पाते…इसलिए शायद आपका प्यार दिखाऊटी हो सकता है ।

3- क्या आप किसी को इस हद तक प्यार करतें हैं…..आपके मन में ये ख्याल बार -बार आता है..हां मैं अपने प्यार के बारे में स्वीकार लूंगा…क्योंकि मैं नहीं चाहता मेरी वजह से तुम्हें कोई आरोप लगे इससे पहले मैं तुम्हें अपना लूंगा । अगर यह आप करते है या यह ख्याल आपके दिल या दिमाग को बैचैन करता है तो आपका प्यार सच्चा है ।

4- यह सवाल बहुत कठिन है ….हमें कोई साथ देगा या नहीं..? अधिकांश हम इस बात को नहीं जान पाते, आखिर हमारे सच्चे प्यार का साथ कौन देगा कौन समझेगा, अगर ऐसा नही हुआ तो हम भला कर भी क्या सकते हैं । इतनी बड़ी पार्टी से लड़ सकते नहीं, भाग के शादी कर सकते नहीं । क्योंकि हम इतना बुजदिल नहीं हैं अगर हम शादी बगावत कर के कर भी लें तो हमें चैन कभी भी मिल नही पाएगा हमारी जिंदगी और तबाह बन जाएगा, क्योंकि हमारा प्यार स्वार्थी नहीं..हमारा प्यार सच्चा है । और जिस प्यार में त्याग, बलिदान ना हो वो सच्चा प्यार कंहा कहलाता है ….ये भी आपके सच्चे प्यार का पुरूफ है ।
5- सच्चे प्यार में यह महत्वपूर्ण भूमिका है………………..।
प्यार तो कोमल सा एहसास है जिसे कुछ भी कर के यकीन नही दिलाया जा सकता है क्योंकि प्यार तो विश्वास पर टिका होता है । प्यार का नींव ही विश्वास होता है अगर जिस दिलों में विश्वास ही नहीं तो फिर लाख कोशिश के बावजूद किसी को अपना हमसफर नहीं बना सकता, और न अपनी जिंदगी का हिस्सा ।

6- प्यार के भी दो रूप होते हैं जिसमें एक रूप ( आकर्षण सिर्फ आंखो की चमक होती है किसी के रूप रंग की चमक में बन्ध कर आदमी भुल से उसे प्यार का नाम दे देता है जो थोड़े ही दिनों में खुशबू की तरह उड़ जाती है और एक दूसरे से थोड़े ही दिन में उब जातें हैं । और लोग बड़े आसानी से उसे बेवफाई का नाम दे देते हैं, पर दरसल वो प्यार तो था ही नहीं । प्यार तो दिलों से होता है न की किसी की खुबसूरत चितवन से, प्रेम तो पाक साफ आईने की तरह सच्चा होता है जो दो रूहों से होता है जिंदगी में हर इंसान सिर्फ एक बार प्यार करता है और उसके बाद किसी दूसरे को नही चाहता और न दिल में वो जगह दे पता है वो एक अलग बात है जो समाज के बन्धन में मजबुरीयां में बंध के रह जाता है ।

©तबस्सुम परवीन, अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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