लेखक की कलम से

शहीद की बेटी……

जब तक रगों में लहू ये बहेगा।
मेरे जिस्म का एक एक कतरा , दुश्मन से लड़ता रहेगा।
होगी जीत भारत की ,शहादत रंग लाएगी।
शहीदों की कुर्बानी, नई इबारत लिख जाएगी

देखो ना दार जी (दादा जी)बीजी (दादी) और मां मेरे पीछे ही पड़े है। मुझे नहीं बनाना कोई रसोई , चूल्हा चौका। मुझे तो अपने पापा की तरह देश का सिपाही बनकर देश की रक्षा करनी है। पर मैं एक लड़की हूं, इसलिए मुझे ये सब सीखना ही है ,ये दोनों ऐसा कह कर मेरे पीछे पड़ी है । अब आप ही इन्हें समझाईये ना दार जी,ऐसा कहकर दस साल की नन्ही अमनप्रीत अपने दादा जी से लिपट जाती है…

दादाजी भी अपनी नम आंखों को पौछते हुए दोनों को डांटते हुए कहते हैं ,क्यों मेरी लाडो के पीछे पड़ी हो। यदि ये देश की सेवा करना चाहती है तो मैं इसे खूब पढ़ाऊंगा, खूब लिखाऊगा, बड़ा अफसर बनाऊंगा ।कि फर्क पड़दा है ,कि कुड़ी है ,कि मुंडा।इसकी रगों में अपने कुलजीते (उनके बेटे )का खून है,जो देश के लिए शहीद हो गया। वो भी चाहता था कि उसकी औलाद देश की सेवा करें चाहे मुंडा हो , चाहे कुड़ी।

क्या तुम्हें याद नहीं अपनी अमनप्रीत के जन्म से ठीक तीन दिन पहले सीमा पर युद्ध छिड़ जाने पर ये कह कर गया था कि देश को मेरी बहुत जरूरत है।

शादी के दसवर्षों बाद जिस पहली औलाद का इंतजार था ,उसका मुख ना देख सका और इसके जन्म से ठीक है एक दिन पहले देश के लिए शहीद हो गया ।अपने देश के लिए अपनी जान दे दी ,और तिरंगे में लिपटा हुआ ही अपनी बेटी से पहली बार मिला…

मुझे गर्व है अपने बेटे की शहादत पर,अब यह मेरा फर्ज है कि मैं अपने बेटे की इच्छा का सम्मान करो और उसकी लाडो का सपना जरूर पूरा करूं। ऐसा कहकर दादाजी फफक-फफक कर रो पड़ते हैं और अपनी पोती को गले लगा लेते हैं…

ठीक बारह साल बाद जब उनकी पोती एयर फोर्स आंफिसर बन कर लौटती है तो ,पहला सैल्यूट दादा जी ही होता है…..

ये कहानी एक सच्चे देशभक्त जो देश के लिए शहीद हुुए।

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

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