लेखक की कलम से

अब चलें हज पर आडवाणीजी … अंतिम भाग

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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फ़ौज के सैनिकों पर लालकिले में मुकदमा चला कि उन्होंने भारत (ब्रिटिश) सरकार से विद्रोह किया। मगर इन राष्ट्रवादियों ने कहा कि उन्होंने ब्रिटिश सेना से संबंध आजादी के लिए तोड़ डाला था। उन्हें भी आजीवन कारावास हुआ। पर कमांडर आचिनलेक ने गवर्नर जनरल द्वारा सजा माफ़ करायी, क्योंकि भारत (1946) आजादी की देहरी पर था। नेहरु सरकार नेता बोस के सैनिकों को कैसे जेल में रखती ? देश में गदर मच जाता। मगर नेहरु ने आजाद हिन्द फ़ौज के उन वीरों को बर्खास्त ही रहने दिया। पेंशन तक नहीं दी।

स्वाधीनता आते ही प्रधानमंत्री का पहला बयान था कि वोट का अधिकार पा जाने के बाद लोकतन्त्र में सत्याग्रह का अधिकार नहीं रहता है। अर्थात जिस कोख (जनसत्याग्रह) से आजादी जन्मी, नेहरु ने उसी को लात मार दिया।

इसी सिलसिले में मेरे साथियों का भी जिक्र हो। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार के आधार पर निर्णय देने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी पदच्युत कर दी गयीं। पर उन्होंने पद छोड़ा नहीं। जनांदोलन को पुलिस से कुचलवाया गया। इमरजेंसी में लाखों विरोधी जेल में ठूंसे गए। तब हम पच्चीस विद्रोहियों पर बड़ौदा डायनामाईट का मुकदमा चला। जब हमें दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मोहम्मद शमीम के सामने पेश किया गया था तो हम पर राजद्रोह का आरोप था। पेशी के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस ने एक लिखित बयान पढ़ा। उसमें एक वाक्य था, “जज साहब ! हमारी यह हथकड़ियां, वस्तुतः भारत को बांधी गयी जंजीरे हैं। ” ठीक उस समय हम सब ने कोर्ट में हथकड़ियां झनझनायी। यह खबर मार्क टली ने बीबीसी पर प्रसारित किया। हमने कोर्ट को बताया था कि इंदिरा की तानाशाह, गैरकानूनी सरकार को उखाड़ फेंकना हर भारत-प्रेमी का कर्तव्य है। हम हर सजा के लिए तत्पर हैं।

मगर लालकृष्ण आडवाणी ने ऊपर गिनाये गए उदाहरणों के विपरीत जाकर साफ़ अस्वीकार कर दिया कि राममंदिर हेतु बाबरी ढांचा गिराना उनका लक्ष्य था। उन्होंने देश के आर्तनाद को अनसुना कर दिया।

अब इतिहास उनका स्थान तय करेगा।

भगवान् राम को उनका न्यायोचित जन्मस्थान दिलाने हेतु उत्सर्ग का ! अथवा खुद बच निकलने का बहाना बनाने का?

 

  ©के. विक्रम राव, नई दिल्ली   

 

अब चले हज पर आडवाणीजी …

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