लेखक की कलम से

बैरागी मन …

एक गीत याद आ रहा है “कैद में है बुलबुल और सैयाद मुसकुराए” पर रुकिये ‘कैद’ का शाब्दिक अर्थ कारागार, कारावास या बंधन होता है। पर … हमारी स्थिति तो यहां उल्टी है ..यहां तो साहब हमने अपने आपको कैद में रखा है और खुश भी हैं। सच मानिये इतने बरसों में यह पहला अनुभव है जहां कुछ अलग ही स्थिति है कुछ अलग हटकर मनोस्थिति है ..मन भयभीत है ..पर शांत भी .., हम बंधन में हैं पर ..सुखी भी, हम सब घर में हैं और काम भी हो रहे हैं …. जेब में पैसे हैं पर खर्च नहीं कर सकते …जिंदगी इसी शर्त पर कैद है कि बेहतर कल के लिए यह जरूरी है …कुछ इसी तरह के भाव के साथ हम सब पिछले पच्चीस दिन से घर में हैं क्योंकि हमें अपनी चिंता है ..परिवार की चिंता है और देश की चिंता है।

इन परिस्थितियों के बीच आप सभी ने यह महसूस किया अपनी धर्म अपनी संस्कृति पर गर्व करना। वैश्विक इतिहास में यह अपने ढंग की पहली आपदा है जिसमें हमारे सनातन धर्म के संस्कार जो हमारे पूर्वजों ने दैनिक क्रियाकलाप के रुप में हमारे अंदर समाहित किये हैं उन सब पर हमें गर्व होता है -हाथ जोडकर प्रणाम करना, सिर झुकाकर बडों के पैर छूना। वेदों में मन की निकटता और एकांतवास का भी उल्लेख मिलता है जिससे हम अभी परिचित हो रहे हैं। अपने आपको जानने समझने और परिवार को निकटता से जानने का क्रम चल रहा है।

आहार विहार, सोच विचार में परिवर्तन, नियमित योग, घर का सात्विक भोजन ये सभी आज के समय में प्रासंगिक हैं यानि हम अपनी सनातन संस्कृति और धर्म की ओर फिर लौट रहे हैं यह भाव ही हमें सुखी बनाता है। सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः – का भाव हमारा अभिन्न अंग रहा है और अभी इन विकट परिस्थितियों में हम इसके समीप आ गए हैं। ध्यान, योग, पूजा, हवन आज हमारे अभिन्न अंग बन गए हैं और धैर्य व संतोष हमारे साथी।

इन सबके बीच एक नतीजा यह भी आया है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। अब हमारी नींद खुलने के लिए अलार्म की जरूरत नहीं पडती .पक्षियों के मधुर कलरव से नींद खुलती है। फिर बाहर निकले तो स्वच्छ नीला आकाश। पक्षियों की और तितलियों की अनेक किस्में जो विलुप्त हो गई थीं वो भी निर्भीक होकर विचर रही हैं। सडकें सूनी हैं ..हर तरफ शांति है ..जहां तक देखो हर दृश्य सुहाना है।

यातायात के साधन बंद ..छोटी-बडी फैक्ट्रियां बंद होने से कार्बन का उत्सर्जन भी बंद ..सडकों के किनारे लगे पेड पौधे साफ स्वच्छ.. देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो पृथ्वी हीलिंग मोड में आ गई है जो नुकसान इंसानों ने प्रकृति को पहुंचाया उसकी भरपाई हो रही है और हम मूक अपनी पूर्व करनी पर पछताते हुए देख रहे हैं प्रकृति को फिर से श्रृंगारित होते हुए और यह भाव उस भाव से कमतर नहीं है जब मां एक शिशु की सर्जना अपने गर्भ में करती है।

 कुल मिलाकर मन ,वचन और कर्म में जब हर चीज को सकारात्मकता से जीने की शक्ति आ जाए ,हर चीज में चाहे वह प्रकृति या पशु पक्षी हो जब हम उसके साथ एकाकार हो जाएं, जब हममें परदुखकातरता का भाव आ जाए, जब हम अपनी सुविधाओं को समेंट ले और संतुष्टि का भाव आ जाए, जरूरतमंद के साथ बांटने का गुण आ जाए तो …हम सब संत बन जाते हैं यानि किसी भी परिस्थिति का सामना करने का भाव …बैरागी बन जाना .. अपनी ही धुन में रहना.. फक्कड़पन का भाव आना .. मस्त होना ..आज अपने इसी गुण के कारण जो राष्ट्र अपने को महाशक्ति कहतीं थीं ..हम उनसे श्रेष्ठ हैं और आगे भी रहेंगे ..क्योंकि हम लोगों को दे रहे हैं और यही ‘देने’ के गुण के कारण हम बैरागी हैं।

आज इस विपदा ने हम सबमें इसी भाव को जागृत कर दिया है। तो आईये इस भाव को अपने अंदर हमेंशा जीवित रखें .. और जब यह भाव हमारे अंदर जीवित रहेगा तो हम हर विपदा से डटकर मुकाबला कर सकते हैं। और कह सकते हैं ‘बैरागी मन मेंरा’।

©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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