लेखक की कलम से

हे पार्थ ! जागते रहो …

 

विकट विपदा आन पड़ी है,

इस भूखंड आर्यावर्त में।

मानवता कराह रही है,

फंस मृत्यु के भंवर गर्त में।।

 

इस त्रासदी का ऊंट,

किस करवट बैठेगा।

अपने अपने दृष्टि से,

हर कोई भांपते रहो।।

 

कहीं अस्तित्व जग का,

समाप्त न हो जाए,

हे पार्थ! इस कुरुक्षेत्र में,

आंखें खुली रख जागते रहो।।

 

न कोई अपना, न कोई पराया,

उसे दूर रखो, जो छ्द्मरूप आया।

न गोली से, न बम बारूद से,

न कोई तीर कमान से।।

 

इस दानव का दमन होगा।

स्वच्छता, और समझदारी के,

अचूक अग्नि बाण से।

हे पार्थ! जितना हो सके,

समूह के चक्रव्यूह से,

तुम सदा भागते रहो।।

 

अपनों के प्राण रक्षार्थ हेतु,

खुली आंखों से जागते रहो।।

इस युद्ध में तांडव ऐसा,

न देश काल कोई सीमा हैं।

जीवन के आगे हे तात! मृत्यु है,

जिसकी न कहीं कोई बीमा है।।

 

निज निवास को ढाल बनाकर,

इस दुश्मन से तुम्हें लड़ना होगा।

मास्क, सेनिटाइजर का गाण्डिव लेकर,

हे पार्थ! यह युद्ध लड़ना होगा।।

 

अपने कर्तव्य की रणभूमि से,

पीठ दिखाकर न भागते रहो।

मानवता का गीता ज्ञान ले,

हे पार्थ! तुम जागते रहो।।

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)

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