लेखक की कलम से

अगहनी धूप मुबारक …

 

रजाई में ठिठुर रही हर उम्र की मोतियां

शीतलहरी में भी बुजुर्गों को भा रही हैं धोतियां

पगडंडियों पर अठखेलियां करे शबनमी बूंदें

बच न पाए कोई ठंड से पढ़ लें जितनी पोथियां

 

उंगलियों को पानी की बूंदें झटके लगाती है

आग भी सिकुड़ कर सहम सहम जाती है

नहीं कहीं सुनने को मिलता अब प्रभाती

हर तरफ का जोर केवल शोर सुनाती है!

 

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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