लेखक की कलम से

हिंदी का राष्ट्र रंग …

हिंदी को राष्ट्रीय स्तर पर लोकभाषा के रूप में मज़बूती के साथ स्थापित करने हेतु यह जरूरी है कि हम हिंदी को खड़ी बोली से अधिक इसकी 24 बोलियों (मैथिली एवं संथाली सहित) के साथ ही मराठी, गुजराती, पंजाबी, तमिल, कन्नड़, मलयालम, तेलुगु आदि भाषाओं के रचनाकारों को उन्हीं के शब्दों में देवनागरी लिपि में लिखने हेतु प्रेरित करें तभी अंग्रेजी का साम्राज्य कमजोर होगा।

हिंदी मतलब सभी हिंदुस्तानी भाषाओं एवं बोलियों का समन्वय। इसे केवल उत्तर भारत या मध्य भारत या पूर्वी भारत से जोड़कर न देखें। बल्कि देश की एकता हेतु संपूर्ण भारत की भाषाओं, बोलियों के समन्वित रूप में देखें। हिंदी के निर्माण में, इसकी मजबूती में सभी भाषा-भाषियों का योगदान रहा है। हिंदी का मतलब ‘भारत की समन्वित संस्कृति की भाषा जिसका विकास भारत के निवासियों द्वारा संस्कृत के सरलतम लोक रूप में किया गया।’ इसीलिए मैं कहता हूँ हिंदी न उत्तर की, न दक्षिण की, न पूर्व की, न पश्चिम की। हैं यह अखिल भारती की।

अक्सर हम पढ़ते है औपनिवेशिक व्यवस्था के समर्थक इतिहासकारों की कलम से लिखे पन्नों को जो कहती है भारत की वर्तमान सीमाओं को अंग्रेजों, मुगलों ने बनाया। यह कितनी मूढ़ता भरी बात है। वैसे-ही-जैसे भारत की सभी भाषाएँ अलग हैं।

पर इस लेख के साथ संलग्न तस्वीर में खुदी विभिन्न सहोदरा भारतीय भाषाओं को देखिये । आपको लगेगा कि हमारी भाषाएँ कितनी एक है। कितनी समान है। उसी प्रकार जैसे हम सब तमाम पंथ, विचारों की विभिन्नता के बावजूद आपस में एक है क्योंकि हमारी संस्कृति एक है। हमारी भाषाएँ एक है। लिपि हटा दें तो उनकी शाब्दिक संरचना लगभग एक हैं । इसीलिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद-351 सभी से मिलकर बने एक हिंदी का समर्थन करता है।

वास्तव में भारतीय संविधान ने हिंदी की इसी लोकशक्ति, राष्ट्रभाषा होने की वजह से इसे राजभाषा के पद पर आसीन किया। भारत का समाज सदैव बहुभाषिक रहा हैं। हिंदी ने इस बहुभाषिक समाज को एक करने का कार्य किया है। जरुरत है युवा पीढ़ी को प्रेरित करने एवं हिंदी की इस शक्ति को प्रसारित करने की। भारत की मज़बूती हेतु भारत की सभी भाषाएँ एवं बोलियाँ =लिपि देवनागरी के प्रसार हेतु कार्य करें। हिंदी को सभी की भाषा बनाने के लिए यह बेहद जरूरी है। आजादी की लड़ाई में या उससे पूर्व यह हमारी लोकभाषा के रूप में उपस्थित थी। आइए पुनः इस दिशा में कार्य करें।

जय हिंद! जय हिंदी!!

 

©डॉ साकेत सहाय, नई दिल्ली                  

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