लेखक की कलम से

भटके युवा पीढ़ी गांधी से कहीं दूर तो नहीं …

आजाद भारत के सात दशकों में सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक बदलाव की जो कहानी लिखी गई है, उस कहानी का अधिकांश हिस्सा युवाओं के नाम रहा है। कहते हैं युवा जिधर चलते है जमाना उधर चलता हैं, और बदलाव की शुरुआत युवाओं से होती है। युवा जानता है कि कैसे एकसाथ होकर विकास का रास्ता तय किया जा सकता है, और जब बात देश एवं समाज के निर्माण और विकास की हो तो इसमें युवाओं की भागीदारी के बिना यथास्थित में बदलाव की उम्मीद में बेमानी होती है। आज के युवा अपने मार्ग से विचलित होते दिखाई देते है।

आज युवा जिस तेजी से भूमंडलीकरण की राह पर दौड़ रहा है उस से युवा वर्ग के बीच में खुद को समोपाना मुश्किल सा दिखाई दे रहा है, युवा लक्ष्यविहीन, कपोल-कल्पनाओं, नस्लवाद, मजहबी जैसे रंगों में रंगे दिखाई दे रहे हैं। आज अनेक विरोधी दल, शासन सत्ता के विरोधी दल युवाओं को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। हम युवा समझने में उल्टफेर कर देते हैं। आज युवाओं के हाथ में कलम होना चाहिए उसी हाथों में गोला बारूद, दिमागों में हिंसात्मक विचारों को भरा जा रहा है, जिससे वे मरने और मिटाने पर आतुर हो जाते हैं। आज युवा जिस राह पर चल रहे हैं।

उससे युवा वर्ग गांधी के सपनों के भारत से न केवल दूर होता जा रहा है बल्कि वह पश्चिम की भौतिकवादी चकाचौंध को आत्मसात करने में लगा है। हालांकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आमद से पश्चिमी देशों से जो आवागमन बढ़ा उसने कुछ सालों में ही युवा पीढ़ी को गांधी के विषय में सोचने पर मजबूर कर दिया। अधिक पैसा कमाने की ललक से तमाम तरह डिग्रियां लेकर दूसरे देशों में गए युवाओं को गांधीवाद के वैश्विक स्वरूप ने उनकी सोच को बदला है।

कम ही सही लेकिन कई युवाओं की ऐसी कहानियां हमारे लिए उदाहरण हो सकती है जो विदेश की आरामतलब और अधिक आय वाली नौकरियों का परित्याग करके स्वदेश लौट आए और न सिर्फ वापस आए बल्कि देश के कई क्षेत्रों में अविस्मरणीय काम किए हैं। अलावा इसके गांधी के सबसे बड़े हथियार अहिंसा को भी अपनाकर कुछ साल पहले हुए अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों में बढ़ चढ़ कर युवाओं ने भागीदारी की।

कोई शक नहीं कि आजादी के बाद के हुए आंदोलनों में अन्ना हजारे का आंदोलन अहिंसा की दृष्टि से उल्लेखनीय रहा। उसे कभी हिंसा की आंच नहीं लगी। यह गांधी के वैश्विक वैचारिक थाती का ही परिणाम था। हालांकि सदैव ही यह धारणा बनाये रखने की कोशिशें होती रही हैं कि गांधी नाम का व्यक्ति युवाओं के लिए नहीं, वह तो अवकाश प्राप्त वृद्ध का आदर्श है। इस धारणा को बलवती करने में उपभोगवादी संस्कृति और बाजारवाद ने कोई कसर नहीं रखा।

इतिहास साक्षी है कि गांधी के केवल विचार ही नहीं उनके कर्म भी युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रहे हैं। भारत आने से पहले जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे तो वहां की सरकार ने भारतीय रीति-रिवाज से हुए विवाहों की वैधता पर सवाल खड़ा किया और उन विवाहों को मानने से इनकार कर दिया। इससे प्रभावित होने वालों में अधिकांश रूप से युवा ही थे।

ऐसे युवाओं को वहां की सरकार ने नौकरियों से निकालना शुरु कर दिया। उस समय गांधीजी एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो उनके साथ खड़े हुए। उन्होंने युवाओं को संगठित और प्रोत्साहित किया और एक बड़ा आंदोलन छेड़ा। बेरोजगार हो चुके युवाओं के लिए ‘फीमिक्स आश्रम’ बनाया और वहां पर लघु उद्योग चलाने लगे। यह एक अद्भुत प्रयोग था जिसके लिए भारत के लोगों ने भी अपनी सहायता भेजी।

सत्य, अहिंसा, प्रेम, सादगी जैसे गांधीवादी विचारों की पूंजी पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है। ऐसे में आधुनिक तकनीकी उपाधियों को हासिल करके वैश्विक अर्थव्यवस्था का शिकार और एकल जीवन की ओर उन्मुख आज की युवा पीढ़ी गांधी से अगर कुछ सीख सकती है तो वह है- किसी भी ऐसी चीज का इस्तेमाल करना अनैतिक है जो जनसाधारण को सुलभ नहीं कराई जा सकती। इसका सार तत्व है कि तुम तब तक सुखी नहीं हो सकते जब तक तुम्हारा समाज सुखी नहीं हो जाता।

कुछ साल पहले हुए सर्वे में यह पता चला कि देश के 80 फीसदी युवा अपना आदर्श गांधी को मानते हैं। हो सकता है इस आंकड़े में ऐसे युवा भी होंगे जो आमतौर पर गांधी को अच्छा मानते हुए अपना आदर्श बता गये हों। लेकिन अभी आईबीएन-सीएनएन के एक देशव्यापी ताजा सर्वे में फिर यह सामने आया कि देश के अधिकांश युवा गांधी को अपना रोल मॉडल मान रहे हैं। यह सुखद आश्चर्य की बात है कि जहां एक तरफ बीयर और पब संस्कृति वाली वर्तमान पीढ़ी पाश्चिम जीवन शैली को आत्मसात कर रही है वहीं दूसरी तरफ वह गांधी को आदर्श बताने में नहीं हिचकती।

युवा देश की पूंजी होते है और सरकार की जिम्मेदारी होती है कि युवाओं के शक्ति रूपी पूजी का प्रयोग सही तरीके से किया जाए जिस से देश के राजनितिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास को एक नई दिशा और दशा मिले। आज हमें सैद्धांतिक के साथ व्यावहारिकता के पक्ष पर जो देना चाहिए जिस से युवाओं के सोचने समझे के प्रवृत्ति में बदलाव आए।

हालांकि युवा शक्ति का लोहा दुनिया भर में माना जाता है लेकिन आज की युवा शक्ति को सकारात्मकता की ओर मोड़ना बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। जहां इस शक्ति को सही दिशा में मोड़ा जा सका है वहीं नई ऊंचाइयां नापी जा सकी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि युवा शक्ति की उर्जा का सकारात्मक कार्यों में उपयोग करना समाज और सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी है और इसे निभा कर ही युवाओं को सृजनात्मक कार्यों में लगाया जा सकता है।

©अजय प्रताप तिवारी चंचल, इलाहाबाद

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