लेखक की कलम से
शारदीय सुप्रभात …
कोई बादलों की ओर झांकता है
मैं जमीन तजवीजती रहती हूं
कोई मौसम के आसार देखता है
मैं मिट्टी की नमी को महसूसती हूं
कोई जिंदगी देखकर लिखता है
मैं भावनाओं को सहेजती रहती हूं
कितने शब्द गमों के पैबंद भरता हैं
मैं गमगीन हृदय में सुगंध भरती हूं
लिखते और भी हैं लिखती मैं भी हूं
वो दुख को सहेजते हैं मैं उड़ा देती हूं!
©लता प्रासर, पटना, बिहार