लेखक की कलम से

जान सके तो जान…

दोहे

जीवन तपती धूप के,

सुख-दु:ख मीठे छंद।

कोरे कागज पर लिखे,

मृत्यू के अनुबंध।।

काल चक्र की तीन गति,

तिन मह एक प्रधान।

न भूतो, न भविष्यति,

वर्तमान पहचान।।

जीवन कर्म प्रधान में,

कर्म-मर्म पहचान।

दो नयनों के मध्य में,

ज्ञान तराजू जान।।

जो कानों से न सुने,

नयन सके न जान।

जैसे अनुभव नासिका,

लेत गंध पहचान।।

समय आज का फूल है,

कल देखो मुरझाए।

जो सीचों तुम आज को,

फिर कल में खिल जाए।।

©जाधव सिंह रघुवंशी, इंदौर

परिचय- राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में नियमित दोहा-छंद व कविताओं का प्रकाशन। साहित्यनामा पत्रिका द्वारा सम्मानित।

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